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    अपने जीवन का सॉफ्टवेयर स्वयं बनाएं

    अपने जीवन का सॉफ्टवेयर स्वयं बनाएं .

    अपने जीवन का सॉफ्टवेयर स्वयं बनाएं

    कंप्यूटर और हमारे जीवन का सिस्टम एक जैसा है. कंप्यूटर की बॉडी, बॉडी में हार्डवेयर, हार्डवेयर में सॉफ्टवेयर. इसी प्रकार हमारा शरीर, उसमे स्थित ब्रेन स्पाइनल कार्ड और पूरा नेर्वुस सिस्टम है उसका हार्डवेयर और उसकी प्रोग्रामिंग मन उसका सोफ्टवेर, और उसका प्रगटीकरण उसके मॉनिटर {संसार} में होता है. जैसे मॉनिटर सबके अलग-अलग होते है, उसी प्रकार हम सबके संसार भी अलग-अलग होते है. . संसार'रुपी मॉनिटर वही दर्शाता है जैसी हमारे अवचेतन में प्रोग्रामिंग है, जैसे अगर दुःख की प्रोग्रामिंग है तो संसार'रुपी हमारा मॉनिटर दुःख को ही प्रगट करेगा, यदि आनंद की प्रोग्रामिंग है तो आनंद प्रगट करेगा. सार-सूत्र यह है बहार संसार'रुपी मॉनिटर में जो भी प्रगट हो रहा है वह आपके भीतर अवचेतन की प्रोग्रामिंग से आ रहा है.

    और हमारे लिए खुशखबरी है कि हम अपने अवचेतन में फिर से रेप्रोग्रम्मिंग कर अपने संसार को सुंदर बना सकते है. क्योंकि हमारा अभी जो जीवन है वह जाने-अनजाने अतीत की फीडिंग के कारण है.अतः हम एक संतुलित अपने जीवन का सॉफ्टवेयर बनायें -- जिसमे हमारा संपूर्ण विकास हो, अर्थार्थ पूर्ण भौतिक समृद्धि हो और पूर्ण आंतरिक समृद्धि हो. हमारे पास प्रचुर धन हो, प्यारे मित्र हो'न, हमारी सुन्दर और हमसे मैच करती हुए पत्नी/पति हो, हम घर-परिवार और समाज में अपना सहयोग कर सकें,और भीतर से परम शांत हो'न. यही है संपूर्ण मनुष्य, जिसे हमारे परम सद्गुरु प्यारे ओशो- "जोरबा द बुद्धा कहते है. और "जोरबा द बुद्धा" हमारी नियति है, हमारा जन्म'सिद्ध अधिकार है,हमें कोई सृजन नहीं करना है, हमें तो जागकर इसका आविष्कार करना है. . ऐसा सॉफ्टवेयर अस्तित्व के अनुकूल होगा, और अस्तित्व इसे सहज प्रगट कर देगा.. पर इसको इनस्टॉल करने का राज है--और वह है इसे अवचेतन की परम गहराई में इनस्टॉल करना,वह हमारा रचनात्मक क्षेत्र है, वहीँ से सारे ब्रहम्माण्ड की रचना होती है. उसी गहराई में जाकर हम जैसा जीवन चाहते है उसे फ़िल्म रूप में घटते हुए देखना होता है, अर्थार्थ हमें अपनी संकल्पना को इतनी अधिक संवेदन'शीलता के साथ चित्रात्मक रूप में देखना होता है कि जैसे हम यथार्थ में उसको जी रहे है'न. . सम्मोहन के द्वारा हम अपने अवचेतन में जीवन के सॉफ्टवेयर को इनस्टॉल कर सकते हैं. .

    सम्मोहन हमारी सहज स्वाभाविक शक्ति है.. डॉ.मिचेल नेव्तोन कहते है'न-- आल हिप्नोसिस इस सेल्फ हिप्नोसिस, सारा सम्मोहन स्वयं का सम्मोहन है.. रात्रि नींद में हम सहज ही सम्मोहन की अवस्था में चले जाते है.हम चाहें तो नींद का उपयोग अपने सॉफ्टवेयर को इनस्टॉल करने में कर सकते है.. हम कुछ मित्र ऐसा प्रयोग कर रहे है--हमने सजगता'पूर्वक 'जोरबा थे बुद्धा' को ध्यान में रख- कर अपने जीवन का सॉफ्टवेयर बनाया है, जिसे हमने गाते हुए अर्थार्थ लयबद्धता में उसे गुनगुनाते हुए रिकॉर्ड कर लिया है, रोज सोते समय उसे रिपीट मोड में लगाकर सो जाते है,सुबह जागने पर वह चलता रहता है, दिन में जब समय मिलता है तो अपने को भाव पूर्ण सुझाव देकर उस सॉफ्टवेयर को इनस्टॉल करते रहते है,शेष समय इंद्रियों के प्रति खूब संवेदनशील होकर क्षण-क्षण इस आभाव में जीते है की हमारी संकल्पना पूरी हो गई है. प्रगट करते रहते हैं.हम जो संकल्पना कर रहे है उस'से सम्बंधित रास्ते बन'ने लगे है,आप भी ऐसा प्रयोग करे और अपने अनुभव हमें [ नींद में भी आकर्षण की शक्तिंया'न सोने से पहले के हमारे आखिरी विचारू'ं पर काम करती है'न, इसलिए सोने से पहले अच्छे विचार करें] [ आपको वही मिलता है जो आप अवचेतन को महसूस करा पाते है न कि वह जिसके बारे में आप सोच रहे है]

    [यह कैसे होगा या ब्रहम्माण्ड उस चीज को आप तक कैसे पहुचायेगा, यह चिंता करना आप का काम नहीं है.यह तो ब्रहम्माण्ड का काम है. उसे अपना काम करने दें. जब आप यह पता लगाने की कोशिश करते है की यह काम कैसे होगा, तो आप के द्वारा भेजी जाने वाली फ्रेक्वेंसी में आस्था का अभाव होता है. इससे लगता है कि यह काम भी आप को करना है और आपको इस बात पर यकीन नहीं है की ब्रहम्माण्ड उस काम को आप के लिए अपने आप कर देगा. रचनात्मक प्रक्रिया में कैसे के बारे में सोचना आपका काम नहीं है.

    एक बार आप ओशोधारा का सम्मोहन प्रज्ञा प्रोग्राम कर ले. वहां "प्यारे सद्गुरु त्रिविर" के द्वारा आप को नै-नई तकनीक इंस्टालेशन की पता चलेंगी,जो आपके अनुकूल लगे उसका घर आकर आप अभ्यास करें. क्योंकि हमारी "ओशोधारा" में मनुष्य के संपूर्ण विकास पर खोज चल रही है,और नित-नूतन नै- नई तकनीक खोजी जा रही'ं है'न. जिसे हम आसानी से "जोरबा द बुद्धा" को उपलब्ध हो सकें..

    ओशो जागरण