तुरीयावस्था और तुरियातीतावस्था
तुरीयावस्था और तुरियातीतावस्था
जाग्रत - स्वप्न - सुषुप्ति - तुरीया - तुरीयातीत अवस्था
वैखरी - मध्यमा - पश्यन्ति - परा - समाधी
या
क्रिया शक्ति - ज्ञान शक्ति - इच्छा शक्ति - ओंकार - (गोविन्द में एक-लयता)
१. तुरीया इन तीनों अवस्थायों (जाग्रत-स्वप्न-सुषुप्ति) में अनुस्यूत है माला के मनकों में धागे की तरह, या ये तीनों अवस्थाएं इसी का विस्तार हैं.
२. ओशोधारा के ध्यान समाधी से लेकर चरैवेति (28 तल) तक के कार्यक्रम सद्गुरु त्रिविर के द्वारा इस तुरीयावस्था का ही उद्घाटन है , तथा इसमें पूर्ण रंग भरना है.
३. तुरीयावस्था में सतत रहना का विज्ञान, सूत्र ओशोधारा में हमें प्यारे सद्गुरु त्रिविर सुमिरन के रूप में प्रदान करते है.
४. हमें अपने सुमिरन को जाग्रत (वैखरी) से लेकर सुषुप्ति (पश्यन्ति ) तक पहुंचाना है .
५. फिर सद्गुरु की कृपा से तुरीयातीत अवस्था प्रसाद स्वरुप घटती है.
६. ओशोधारा में जिसे हम गोविन्द कहते हैं . शाक्त-मत में उसे ही वे त्रिपुर सुंदरी, और शैव-मत में उसे ही वे परम शिव कहते हैं .
*ओशो जागरण*
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